
श्री मेहबूब अहमद मेहबूब का जन्म भोपाल में वर्ष 1936 में हुआ ।इन्हे बचपन से ही शायरी का शौक रहा है। प्रारंभ में हजरत बासित उज्जैनी ओर बाद में हजरत शेरी भोपाली ओर हजरत कैफ भोपाली से शायरी की बारीकियां सीखी ।
शायरी का शौक इन्हे आज तक है । मेहबूब साहब के दो शेरी मजमूएं,1-दस्तबस्ता ,2–.बाब दर बाब के नाम से प्रकाशित हो चुके हैं । शायरी के अलावा उनकी लेखन में भी रूचि है,विशेषकर अफसाना निगारी,इन्शईया ,कहानियां ,मजाहिया आदि में लिखते हैं । मुशायरों में कम ही शिरकत करते हैं लेकिन जब पढ़ते है तो अवाम को
अपनी तरफ आकर्षित करते हैं उनकी शायरी के संबंध में डा.वाजिद कूरैशी की राय है कि ” महबूब अहमद महबूब की शायरी को मासूम दिल की शायरी का नाम दिया जा सकता है ।जिसमें कदम कदम पर रिवायत का पास रखा गया है ।” उनकी शायरी के कुछ विभिन्न रंग इस प्रकार है-–
तुम तख्त के वारिस हो मगर भूल रहे हो ।
यकसां नहीं रहते कभी हालात किसी के ।।
एक जर्रा हूं न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा ।
आप डालेंगे नज़र तो आयना हो जाऊँगा ।।
पास मेरे कुछ नहीं है एक निदामत के सिवा ।
वो करम फरमायेंगे तो पारसा हो जाऊँगा ।।
मेरी खामौशी ने उनकी बज्म में
कह दिया सब कुछ कहां कुछ भी नहीं ।।
गमे हयात ने तोड़ा है इस कदर के बस ।
दराज उम्र भी अब मुखतसिर लगे है मुझे ।।
चला है आंधियों से जंग करने ।
न जाने इस दिये को क्या हुआ है ।।
क्या मिलेगा सिवाये रूसवाई ।
अपनी झोली पसार के देखो ।।
कितने तुफा है इस समंदर में ।
अपनी कश्ती उतार कर देखो ।।
उसको पाने की आरजू की है।
ये तमन्ना भी बावजू की है ।।
उसको मंजिल सलाम करती है ।
हौंसला जिनका काम करता है।।
मौसमों को बदलते देखा है ।
उनका हम एतबार क्या करते ।।
लहालहाती खेतिया हो प्यार की
बीज नफरत के न बोना चाहिए ।।
प्यार से दुशमन भी बन जाते हैं दोस्त
फैसले होते नहीं शमशीर से ।।
मुंफलिसी को पता है सब महबूब ।
कौन अपने है कौन बैगाने ।।
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शायर का पता .
सै. महबूब अहमद महबूब
मकान नं 13 ,इस्लामी गेट,शाहजहांबाद,भोपाल मप्र