Ghulam citizens of free India, Jago,

Ghulam citizens of free India, Jago, because you still —— Ghulam, for ———- sixty years after independence, India, built by the British civil law, is a slave . The biggest example, the Indian Penal Code, 1860. The European producer of the British Indian Penal Code. The Europeans have Angrez Indian Penal Code introduced in 1860 and it was January 01, 1862 under the chairmanship of Prof. Maikale the British in the legislation was passed in the House. At the same time, which means January 01, 1862 from the Indian Penal Code, 1860 to implement the Indians be exploited. Indian and Indian citizens to tortures revolution to give the law was created. Sixty years after independence, the legislation also has its own black British citizens of the country for the European atrocity by British  was created Act, the Indian Penal Code, the 1860 abuse is being done. Law of the patriarch of the Indian Penal Code to the wrong interpretation of his own country’s citizens are down today on atrocities. police administration also made by British institution is the Indian Penal Code and police abuse of the well to the torture of citizens of India.
      Therefore, the citizens of India and Jago built by the British to overthrow
 law, the only real freedom can a citizen of India. The Jai Hind.

Published in: on मई 29, 2008 at 5:13 अपराह्न  टिप्पणी करे  

आजाद भारत के गुलाम नागरिकों

आजाद भारत के गुलाम नागरिकों ,जागो, क्‍योंकि ——

तुम अब भी गुलाम हो, क्‍योंकि ———-

आजादी के साठ वर्षों के बाद भी भारत के नागरिक अंग्रेजों के बनाए गए कानून के गुलाम है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण , भारतीय दण्‍ड संहिता,1860 है ।   इस भारतीय दण्‍ड संहिता के निर्माता गोरे अंग्रेज है । इन गोरों अंग्रेजो ने 1860 में भारतीय दण्‍ड संहिता प्रस्‍तुत किया था और इसे 01 जनवरी,1862  में प्रो मैकाले की अध्‍यक्षता में अंग्रेजों की विधान सभा में पारित किया गया । उसी समय से ,यानी 01 जनवरी,1862 से भारतीय दण्‍ड संहिता,1860 लागू कर भारतियों का शोषण किया जाने लगा । भारतीय क्रान्तिकारियों और भारतीय नागरिको को यातना देने के लिए यह कानून बनाया गया था । यह कानून आजादी के साठ साल बाद भी काले अंग्रेजों ने अपने ही देश के नागरिकों पर जुल्‍म ढाने के लिए गोरे अंग्रेजों व्‍दारा बनाया गया काननू,भारतीय दण्‍ड संहिता,1860 का दुरूपयोग किया जा रहा है । कानून के पुरोधा भारतीय दण्‍ड संहिता की गलत व्‍याख्‍या कर अपने ही देश के नागरिकों पर आज जुल्‍म ढा रहे हैं । पुलिस प्रशासन भी अंग्रेजों व्‍दारा बनाई गई संस्‍था है और पुलिस ही भारतीय दण्‍ड संहिता का भलीभांति दुरूपयोग कर भारत के नागरिको पर अत्‍याचार करती है ।

     इसलिए भारत के नागरिकों जागो और अंग्रेजों के बनाए गए कानून को उखाड़ फेकों , तब ही भारत के नागरिक वास्‍तविक आजादी पा सकेंगे ।

     जय हिन्‍द ।

Published in: on मई 29, 2008 at 5:01 अपराह्न  Comments (2)  

वफा सिद्धीकी

शायर श्री वफा सिद्धीकी — सलीम कुरैशी                             

 

नाम उबैदुर रहमान      तखल्‍लुस  वफा सिद्धीकी

पिता का नाम   स्‍व मौलवी अबुबकर

जन्‍म  20 जनवरी 1836

शिक्षा  इन्‍टरेन्‍स ,अदीब कामिल,मुंशी फाजिल,आनर्न्‍स इन उर्दू

पेशा   स्‍टील फेब्रीकेशन इण्‍डस्‍टीज

पता 6,सदाबरत लेन,बेलदारपुरा,भोपाल मप्र

फोन   0755 2738589

 

    श्री वफा सिद्धीकी को शायरी का शौक छात्र जीवन से ही रहा है परन्‍तु बाकायदा शुरूआत सन 1955 से हुई । उनका पहला शेरी मजमुआ “तारे पैहरन” के नाम से सन 1962 में प्रकाशित हुआ । जिसे अदबी व शेरी हलकों में काफी शोहरत और मकबुलियत हासिन हुई । श्री वफा सिद्धीकी मूलत:  गजल के शायर है परन्‍तु उर्दू शायरी की भी सिन्‍फों में महारत रखते हैं । श्री वफा सिद्धीकी को अपने विशेष अन्‍दाज बयान से मुशायरो में मकबूलियत मिली । देश के बड़ बडे़ शहरों में आयोजित होनेवाले मुशायरों में बुलाये जाते हैं । आपको पाकिस्‍तान के मुशायरों में भी आमंत्रित किया गया और उन्‍हें काफी प्रसिद्धी मकबूनियत हासिल हुई । आपको रेडियो  टीवी के साहितियक्‍ कार्यक्रमों मे भी आमंत्रित किया जाता है ।

   अभी तक आपके तीन शेरी मजमुएं प्रकाशित हो चुके हैं, जो इस प्रकार है :—

1;  तारे पैहरन  (गजलें व नज्‍में 1962),

2-  नक्‍शे वफा (गजलों का संग्रह 1995)

3 सारे जहां से अच्‍छा (हिन्‍दी और उर्दू में कौमी नज्‍में,ये रेडियो और टीवी कार्यक्रमो में प्रसारित)

 

  श्री वफा सिद्धीकी के कुछ मशहूर शेर जो लोगों को याद है और मिसाल के तौर पर पेश किये जाते हैं ।

 

                     आए गमें दौरा तुझे सिने से लगा लें ।

                     बरसों गमें जाना  मेरे महमान रहे हैं ।।

                     दुश्‍वार से दुश्‍वार हो वो काम हमें दो ।

                     सुलझायेंगे हम गेसु ए अययाम हमें दो ।।

                     तुमसे तो गुरेजां  नजर आते हैं ये मयकश ।

                     हम सबको पिलायेंगे जरा जाम हमे दो ।।

                     हजार तारिकियों के पहरे कदम कदम पर लगे हैं लेकिन।

                     रवां दवां मंजिलों की जानिब सहर के राही निकल रहे हैं ।।

                     मेरे मरल्‍फूजात लिखें हैं जिन्‍दा की दीवारों पर ।

                     मकतल में जो गूँज रही है वो मेरी तकरीरें है।।

                     सवानेजे पर सूरज आ गया है।

                     मगर दिन है के अब तक सो रहा है ।।

 

              सूरज से रकाबत का उसे खब्‍त हुआ है ।

              वो जिनको दीये की तरह जलना नहीं आता ।।

00

             

Published in: on मई 26, 2008 at 5:29 अपराह्न  टिप्पणी करे  

मेहबूब अहमद मेहबूब

 श्री मेहबूब अहमद मेहबूब का जन्म भोपाल में वर्ष 1936 में हुआ ।इन्हे बचपन से ही शायरी का शौक रहा है। प्रारंभ में हजरत बासित उज्जैनी ओर बाद में हजरत शेरी भोपाली ओर हजरत कैफ भोपाली से शायरी की बारीकियां सीखी ।

     शायरी का शौक इन्हे आज तक है । मेहबूब साहब के दो शेरी  मजमूएं,1-दस्तबस्ता ,2.बाब दर बाब के नाम से प्रकाशित हो चुके हैं । शायरी के अलावा उनकी लेखन में भी रूचि है,विशेषकर अफसाना निगारी,इन्शईया ,कहानियां ,मजाहिया  आदि में लिखते हैं । मुशायरों में कम ही शिरकत करते हैं लेकिन जब पढ़ते है तो अवाम को 

अपनी तरफ आकर्षित करते हैं उनकी शायरी के संबंध में डा.वाजिद कूरैशी की राय है कि महबूब अहमद महबूब की शायरी को मासूम दिल की शायरी का नाम दिया जा सकता है ।जिसमें कदम कदम पर रिवायत का पास रखा गया है उनकी शायरी के कुछ विभिन्न रंग इस प्रकार है-

तुम तख्त के वारिस हो मगर भूल रहे हो । 

यकसां नहीं रहते कभी हालात किसी के ।।

 एक जर्रा हूं न जाने क्या से क्या हो जाऊँगा ।

आप डालेंगे नज़र तो आयना हो जाऊँगा ।।

 पास मेरे कुछ नहीं है एक निदामत  के सिवा ।

वो करम फरमायेंगे तो पारसा हो जाऊँगा ।।

 मेरी खामौशी ने उनकी बज्म में

कह दिया सब कुछ  कहां कुछ भी नहीं ।।

 गमे हयात ने तोड़ा है इस कदर के बस ।

दराज उम्र भी अब मुखतसिर लगे है मुझे ।।

 चला है आंधियों से जंग करने

न जाने इस दिये को क्या हुआ है ।।

 क्या मिलेगा सिवाये रूसवाई

अपनी झोली पसार के देखो ।।

 कितने तुफा है इस समंदर में

अपनी कश्ती उतार कर देखो ।।

 उसको पाने की आरजू की है।

ये तमन्ना  भी बावजू की है ।।

 उसको मंजिल सलाम करती है

 हौंसला जिनका काम करता है।।

 मौसमों को बदलते देखा है

उनका हम एतबार क्या करते  ।।

 लहालहाती खेतिया हो प्यार की

बीज नफरत के न बोना चाहिए ।।

 प्यार से दुशमन भी बन जाते हैं दोस्त

फैसले होते नहीं शमशीर से ।।

 मुंफलिसी को पता है सब महबूब

कौन अपने है कौन बैगाने ।।

00

 शायर का पता .

सै. महबूब अहमद  महबूब

मकान नं 13 ,इस्लामी गेट,शाहजहांबाद,भोपाल मप्र

 

 

 
 

 

Published in: on मई 26, 2008 at 5:20 अपराह्न  टिप्पणी करे  

मध्‍यप्रदेश लेखक संघ की गीत-गो‍ष्‍ठी बैठक

मध्‍यप्रदेश लेखक संघ की बैठक

   भोपाल:दिनांक: 25 मई,2008: मध्‍यप्रदेश लेखक संघ की गीत-गो‍ष्‍ठी बैठक गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र की अध्‍यक्षता तथा श्री जय नारायण चौकसे के विशेष आतित्‍थ्‍य में सम्‍पन्‍न हुई । गीत गोष्‍ठी बैठक में मध्‍यप्रदेश के अन्‍य स्‍थानों से आमंत्रित गीतकारों व्‍दारा गीतों का पाठ किया गया । इतना ही नहीं इस गीत गोष्‍ठी में भोपाल से भी मधु शुल्‍का ,मनोज मधुर जैन, डा रामवल्‍लभ आचार्य ने भी गीत पाठ किया । गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र ने भी अपनी भाव भिषित गीत सुनाये तथा नये गीतकारों को लिए कार्यशाला आयोजित करने की सलाह मध्‍यप्रदेश लेखक संघ को दी । इतना ही नहीं उन्‍होंने कार्यशाला के लिए आर्थिक सहायता करने का आश्‍वासन भी दिया । कार्यक्रम के विशेष अतिथि श्री जय प्रकाश चौकसे जो न केवल साहित्यिक रूचि रखते है बल्कि भोपाल के जानेमाने बिल्‍डर भी है, ने मध्‍यप्रदेश लेखक संघ के कार्यालय के लिए उनके व्‍दारा निर्मित कालोनी में भूखण्‍ड प्रदान करने की घोषणा की । इस अवसर पर मध्‍यप्रदेश लेखक संघ के अध्‍यक्ष श्री बटुक चतुर्वेदी ने श्री जयप्रकाश चौकसे का आभार प्रदर्शन किया । यह अवसर बटुक चतुर्वेदी जी के लिए भावमिश्रित समय था । श्री चौकसे का आभार व्‍यक्‍त करते समय श्री बटुक चतुर्वेदी जी रो पडे़,यह कहते हुए भी राज्‍य सरकार व्‍दारा मध्‍यप्रदेश के लिए भूखण्‍ड का प्रस्‍ताव अस्‍वीकृत कर दिया गया था किन्‍तु श्री चौकसे जी ने आगे आकर मध्‍यप्रदेश लेखक संघ के कार्यालय के लिए  भूखण्‍ड प्रदान कर दिया । आशा है श्री चौकसे भूखण्‍ड पर भवन निर्माण के लिए भी मध्‍यप्रदेश लेखक संघ को आर्थिक सहयोग देंगे ।

Published in: on मई 25, 2008 at 4:27 अपराह्न  टिप्पणी करे  

शायर डा युनूस फरहत

                                                                                            -. सलीम कुरैशी

  डा युनूस फरहत का जन्म 26 मई 1947 को भोपाल में हुआ है । फरहत साहब ने उस वक्त शेर कहा था जब वे कक्षा चार में पढ़ते थे । उनकी पहली रचना 1958 में बीसवीं सदी में प्रकाशित हुई थी । एक तरफ से यह फ़ितरी शायर है  डा युनूस फरहत शायरी की लगभग सभी विधा में पारंगत है । विशेष रूप से यह नज्मों के शायर है । शायरी के साथ साथ फरहत साहब ने पत्रकारिता भी की है । सन 1960 मे महानामा कायनातनिकाला जिसके संपादd रहें मेचलेस विकली के भी संपादक रहे हैं इसके अतिरिक्त भोपाल से निकलने वाले अखबार दैनिक अफकारएआफताब जदीद,भोपाल टाइम्स,रफ्तार आदि मे भी काम किया है।

    अभी तक आपके तीन शेरी मजमूएं प्रकाशित हो चके हैं यथा,1.शकिस्ते ख्वाब,2. विजदान, 3. चिराग ए आरजू । देश व प्रदेश की कई सस्थाओं व्दारा आपको सम्मानित भी किया गया है। मप्र उर्दू अकादमी व्दारा भी सूबाई पुरस्कार दfया गया है । आपके एक सम्मान के अवसर पर साप्ताहिक सुखद भारत व्दारा विशेषांक भी प्रकाशित किया गया । इसकs अतिरिक्त दैनिक अफकार और महानामा महफिल ए सनम ने भी विशेषांक प्रकाशित किए हैं । दैनिक अफकार  में फरहत साहब की शायरी एवं शख्सियत पर जिन शायरों व लेखकोa s मजामित आदि लिखे है उनमे कैफ भोपाली, इमराज अंसारी,शकीला बानों भोपाली,मुस्तफा ताजइशरत कादरी,रज़ा रामपुरी,एम ए शाद,रहबर जौनपुरी,अब्इुल रज्जाक एशी,तहमीना शिराजी आदि सम्मलित है।

     मशहूर शायर कैफ भोपाली लिखते हैं युनूस फरहत ने जिस बर्क रफ्तारी से तरक्की की है और अपने को एक चाबुकदस्त शहसवार मनवा लिया है वो हर तरह मेरे लिए बाईसे मुसर्रत है । डा मलिकजादा मंजूर चिराग ए आरजू में तहरीर करते हैं । मजमुई तौी पर युनूस फरहत मोहब्बत की सरशारियों और जिन्दगी की नाहमवारियों के शायर है ।श्री इकबाल मसूद के विचार है कि युनूस फरहत बुनियादी तौर पर नज्म के शायर है मगर अकलीमें सुखन की तमाम इस्नाद पर दस्त रस रखते हैं ।श्री इशरत कादती लिखते हैं । हरचंद के युनूस पाबन्द नज्मों की तरफ ज्यादा रागीब हैं । लेकिन उसकी गज़लों का आहंग और लहजा भी गैर मानूस नहीं है । और उसने अपने शेरी सफर में जितनी गज़लें कहीं है उनमें भी क्लासिकी तरक्की पसन्दी और नये लेहजे की बाजेगश्त सुनाई देती है ।

   डा युनूस फरहत की शायरी के कुछ नमूने पेशे खिदमत है —.

 

      जारी है अब भी अपनी शहादत के सिलसिले ।

      रन में नहीं हुसैन मगर करबला है ।।

     शिकवा उनसे रूबरू करना है आज ।

     खूबसूरत गुफ्तगू करना है आज ।।

     कुछ इस अदा से मिजाने बहार बदला है।

     चमन में रहते हुए भी खुशी नहीं होती ।।

     मुख्तलिफ नामों से करते हैं तुझे याद सभी ।

     देर लिखता है कोई ,कोई हरम लिखता है।।

     इलाही फिर हुए रावन फसाद आमादा ।

     हमारे हिन्द में फिर कोई राम पैदा कर ।।

     यह मेरी वफाओं का हुनर कैसा लगेगा ।

    हाथों में तेरे खून ए जिगर कैसा लगेगा ।।

   हमें जिस तरह है हवा की जरूरत ।

   इसी तरह है एकता की जरूरत ।।

न नूर ए सुबह मनासिब, न चांदनी ज़ैबा ।

कहां से लाईये तशवीह उस बदन के लिए ।।

जब कभी इश्क की तारीख पढ़ोगे यारों ।

जा बजा देखना फरहत के हवाले होंगे ।।

डा युनूस फरहत

34 मटिया महल,पैराडाईज कार्नर,बिहाइन्ड जीपीओ

नूरमहल रोड़,भोपाल मप्रमोबाइल  9893477378

फोटो एलबम  के लिए नीचे दिए पते पर क्लिक करें  http://drshankarsonane.picsquare.com/album/Default%20Album            

Published in: on मई 22, 2008 at 10:23 पूर्वाह्न  Comments (1)  

विजय तेंदुलकर का निधन

विजय तेंदुलकर का निधन

  नाटक,घासीराम कोटवाल,के लेखक विजय तेंदुलकर                                                                               का दिनांक 19 मई 2008 को निधन हो गया । वे 80 वर्ष के थे । उनका जन्‍म 06 जनवरी 1928 को हुआ था । उन्‍होंने भारतीय साहित्‍य को अनेक प्रसिद्ध रचनाएं दी है ।

Published in: on मई 20, 2008 at 12:15 अपराह्न  टिप्पणी करे  
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